भारत की ऊर्जा क्रांति- एनआईटी राउरकेला की नई बैटरी तकनीक से कोबाल्ट पर निर्भरता होगी कम!
क्या आप जानते हैं कि भारत के ऊर्जा क्षेत्र में एक नई बैटरी तकनीक से कोबाल्ट पर निर्भरता कम हो सकती है? एनआईटी राउरकेला के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी क्रांतिकारी तकनीक विकसित की है, जो न केवल बैटरियों के उत्पादन को सस्ता और टिकाऊ बनाएगी, बल्कि भारत को ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम आगे ले जाएगी। जानिए कैसे यह तकनीक भारत की ऊर्जा क्रांति में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकती है!
भारत की ऊर्जा क्रांति को नया आयाम देने के लिए, एनआईटी राउरकेला के शोधकर्ताओं ने एक बेहद महत्वपूर्ण तकनीकी विकास किया है। उन्होंने एक ऐसी बैटरी तकनीक विकसित की है, जो न केवल कोबाल्ट पर निर्भरता को कम करने में मदद करेगी, बल्कि इसके साथ-साथ भारत के ऊर्जा उत्पादन और भंडारण क्षमता को भी मजबूत बनाएगी। यह तकनीक विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) और नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों के लिए बैटरियों की गुणवत्ता और क्षमता को बढ़ावा देगी, जिससे भारतीय ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर एक बड़ा कदम बढ़ेगा।
एनआईटी राउरकेला के शोधकर्ताओं ने लिथियम-आयन बैटरियों के लिए एक नई कैथोड सामग्री तैयार की है, जिसमें कोबाल्ट की जगह मैग्नीशियम और निकेल का इस्तेमाल किया गया है। इस नई सामग्री के उपयोग से बैटरियों की प्रदर्शन क्षमता में सुधार हुआ है और साथ ही इनकी स्थिरता भी बढ़ी है। इससे बैटरियों का जीवनकाल लंबा होगा, और यह कम लागत में अधिक ऊर्जा भंडारण करने की क्षमता प्रदान करेगी। खास बात यह है कि मैग्नीशियम और निकेल दोनों ही प्रचुर मात्रा में भारत में उपलब्ध हैं, जिससे इन बैटरियों का उत्पादन सस्ता और टिकाऊ होगा।
कोबाल्ट की कमी और इसके बढ़ते मूल्य की समस्याएं वैश्विक स्तर पर ऊर्जा और बैटरी निर्माण उद्योगों के लिए गंभीर चिंता का विषय बन चुकी हैं। कोबाल्ट पर निर्भरता कम करने के लिए यह नई तकनीक एक महत्वपूर्ण समाधान साबित हो सकती है। इसके जरिए भारत न केवल वैश्विक आपूर्ति संकट से निपट सकता है, बल्कि बैटरियों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता को भी बढ़ावा दे सकता है। साथ ही, यह पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है, क्योंकि कोबाल्ट के खनन से जुड़ी पर्यावरणीय समस्याओं से बचा जा सकेगा।
एनआईटी राउरकेला का योगदान भारत की ऊर्जा क्रांति में
भारत सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक देश के कुल ऊर्जा उत्पादन का 50 प्रतिशत हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा से आए, और इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या भी बढ़ाई जाए। इस दिशा में एनआईटी राउरकेला का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है। नई बैटरी तकनीक का विकास भारतीय ऊर्जा क्षेत्र के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है, क्योंकि इससे कोबाल्ट की आपूर्ति पर निर्भरता कम होगी और बैटरियों का उत्पादन भारत में ही होने लगेगा।
भारत को बैटरियों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में यह तकनीक एक क्रांतिकारी कदम है। वर्तमान में, बैटरी निर्माण में कोबाल्ट, लिथियम और ग्रेफाइट जैसे तत्वों का इस्तेमाल होता है, और इनकी आपूर्ति वैश्विक बाजार से होती है। इसका सीधा असर भारत की ऊर्जा सुरक्षा और बैटरी निर्माण की लागत पर पड़ता है। एनआईटी राउरकेला की इस तकनीक से, भारतीय ऊर्जा उद्योग को वैश्विक आपूर्ति संकट से बचाने के साथ-साथ, सस्ती और टिकाऊ बैटरियों का उत्पादन भी संभव होगा।
इसके अलावा, यह तकनीक न केवल इलेक्ट्रिक वाहनों और नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों के लिए उपयुक्त होगी, बल्कि यह भारत के समग्र ऊर्जा बुनियादी ढांचे को भी स्थिर और अधिक सुरक्षित बना सकती है। भारत में बढ़ते ऊर्जा संकट को ध्यान में रखते हुए, इस तकनीकी नवाचार से न केवल ऊर्जा भंडारण क्षमता बढ़ेगी, बल्कि इसके साथ-साथ भारत को ऊर्जा आयात पर निर्भरता कम करने का भी मौका मिलेगा।
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